ANIMATICS

 
किशोरावस्था शारीरिक व मानसिक वृद्धि की अवस्था होती है, अतः इस उम्र में पौष्टिक आहार लेना बहुत आवश्यक है किन्तु किशोरों व विशेषकर किशोरियों में अक्सर एनीमिया अर्थात्त खून की कमी देखने में आती है | भारत में 15 से 24 आयु वर्ग की 56% महिलायें व 25% पुरुष एनीमिया से ग्रसित हैं| तो हम जानेंगे एनीमिया के कारण, लक्षण व बचाव के बारे में| हमारे शरीर को कई प्रकार के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है | जो हमें बढ़ने की शक्ति देने में और रोगों से हमारा बचाव करने में हमारी सहायता करते हैं | भोजन में जरूरी पोषक तत्वों से ही संतुलित आहार बनता है | तो हम संतुलित भोजन के लिए घर के बने भोजन के लाभ , पोषक तत्वों के स्रोत और उनके महत्व को जानने का प्रयास करेंगे |

शरीर को कई प्रकार के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है | इसमे आयरन और फोलिक एसिड के महत्व को भी हमने समझा जो एनीमिया से हमारा बचाव करते हैं | कुपोषण/ एनीमिया से बचाव के लिए आयरन और फोलिक एसिड के साथ जरूरी है कृमि नाशक गोली खाना | तो जानते हैं – एनीमिया व कृमिनाशक गोलियों की बात |

हम सभी में कुछ न कुछ खूबियां है। कई बार हम   इन्हें पहचान नहीं पाते। अपने भीतर छिपे गुणों और   कमियों को जानना जरूरी   है।   हमारे अंदर के गुणों को और बढाने से हममें आत्मविश्वास भी बढ़ता है | यह आत्मविश्वास   ही हमें सफलता दिलाता है | स्वयं के गुणों , कमियों , जीवन मूल्यों को जानना स्वजागरूकता के अंतर्गत आता है | तो हम स्वजागरूकता , आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को और अच्छे से जानने का प्रयास करेंगे |
स्वस्थ रिश्ते बनाए रखने के लिए जरूरी है आपसी सहयोग और सम्मान | साथ ही रिश्तों को अधिक मजबूत बनाने के लिए प्रभावी संवाद कौशल भी आवश्यक हैं| प्रभावी संवाद कौशल से हम आत्मविश्वास के साथ-साथ तर्कसंगत बातचीत करना, और अपनी बात को मृदुता किन्तु दृढ़तापूर्वक रखना सीखते हैं| तो हम निश्चयात्मक बातचीत और स्वस्थ रिश्तों या अस्वस्थ रिश्तों में प्रभावी संवाद कौशल के महत्व को जानने का प्रयास करेंगे| हमारे दैनिक जीवन में कई प्रकार की समस्याएं आती हैं , जिनका हल हम अपनी क्षमता के अनुसार ढूंढते हैं | किसी भी समस्या को हल करने की एक पद्धति होती है जिसे सीखा जा सकता है | समस्या की पहचान करना , विश्लेषण कर विकल्पों का चुनाव करना और निर्णय लेना समस्या समाधान की प्रक्रिया अंतर्गत आते हैं | यदि सूझबूझ से काम लिया जाए तो हर समस्या का समाधान संभव है | आइये करें समस्या का समाधान।
प्राकृतिक रूप से महिला व पुरुष की शारीरिक संरचना में कुछ जैविकीय अन्तर है | इस अंतर के अलावा और कोई भेद नहीं हैं परन्तु समाज ने पुरुषों और महिलाओं को भिन्न –भिन्नभूमिकाएं दी गई हैं इसे ही ‘ जेंडर ' कहते है | समाज द्वारा निर्धारित भूमिकाएँ हमारे व्यवहार को प्रभावित करती हैं तथा भेदभाव पैदा कर हमारे आत्मसम्मान और अवसरों की उपलब्धता पर असर डालती हैं| इसे ही लैंगिक भेदभाव कहते हैं| हम सब चाहे तो मिलकर लैंगिक भेदभाव को दूर कर सकतें हैं| तो हम जेंडर आधारित भेदभाव और इसे दूर करने के लिए क्या कर सकते हैं, यह जानने का प्रयास करेंगे| जब हम हिंसा शब्द सुनते हैं , तो आमतौर पर शरीर पर की जाने वाली चोट और मारपीट के बारे में सोचते हैं। प्रायः हम इसी को हिंसा समझते हैं। किंतु हिंसा के अन्य प्रकार भी हैं जिनमें – शारीरिक, मानसिक, आर्थिक एवं लैंगिक हिंसा भी शामिल हैं। जेण्डर के आधार पर की गई हिंसा या भेदभावपूर्ण व्यवहार जेण्डर आधारित हिंसा कहलाती है | आमतौर पर हमारे समाज में महिलाओं के साथ भेदभाव, हिंसा व प्रताड़ना जैसे दुर्व्यवहार अधिक होते हैं| तो हम जेण्डर आधारित हिंसा को जानेंगे और साथ ही उसका सामना करने के तरीके भी सीखेंगे |
10-19 वर्ष की उम्र को किशोरावस्था कहते हैं यानि किशोर होने की अवस्था| यह बचपन और व्ययस्क होने के बीच की अवस्था है | इस उम्र में शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक व सामाजिक परिवर्तन होते हैं और वह भी बहुत तेज़ी से| यह परिवर्तन प्राकृतिक और स्वाभाविक हैं, किन्तु सही जानकारी के अभाव में मन में अक्सर कई प्रकार के डर वभ्रांतियां पैदा हो जाती हैं| अत: इन बदलाव की सही समझ विकसित करने के लिए हम किशोरी बालिकाओं में होने वाले परिवर्तनों को जानने का प्रयास करेंगे| किशोरावस्था उम्र है वृद्धि और विकास की| यह परिवर्तन इतनी तेज़ी से आते हैं कि अक्सर इस उम्र में हम इन्हें समझ ही नहीं पाते और झिझक के कारण किसी से बात भी नहीं करते| किन्तु मन में बहुत सारे सवाल घूमते रहते हैं, शारीरिक बदलाव और भावनाओं के बारे में| यह बात जितनी किशोरी बालिकाओं के लिए लागू होती है, उतनी ही किशोरों के लिए भी| इन बदलाव को हमें पूरी तरह से समझाना और अपनाना होगा ताकि हम स्वस्थ और खुशहाल रह सकें| तो हम किशोरों में होने वाले परिवर्तनों को जानने का प्रयास करेंगे|
किशोरावस्था में शारीरिक परिवर्तनों के साथ भावनात्मक और मनोसामाजिक परिवर्तन भी होते हैं| जैसे-मूड का बदलना, हम उम्र साथियों के साथ मित्रता, विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण, उत्साह और चंचलता आदि| भावनाओं में होने वाले बदलाव को पहचानना और उससे सामंजस्य बैठाना अति आवश्यक है| भावनाएं सही या गलत नहीं होतीं पर कई बार हम भावनाओं से सही तालमेल नहीं बैठा पाते हैं और यह हमारे व्यवहार में भी परिलक्षित होता है| तो हम जानने का प्रयास करेंगे कि भावनाओं की पहचानकर, उनसे सामंजस्य कैसे बैठाएं और भावनाओं की सही अभिव्यक्ति कैसे करें? हमारे शरीर में 11 तंत्र होते हैं, जो कि हमारे शरीर की गतिविधियों को संचालित करते हैं| दस तंत्र सभी में समान होते हैं| सिर्फ प्रजनन तंत्र महिला और पुरुष में अलग-अलग होता है| यह तंत्र संतति को जन्म देने का कार्य करता है| किशोरावस्था में प्रजनन अंगों और उनसे जुड़े तथ्यों के बारे में सही जानकारी होना आवश्यक है जिससे हम शरीर में होने वाले परिवर्तनों को समझ सकें और स्वयं के स्वास्थ्य और स्वच्छता का ध्यान रख सकें| तो हम किशोरी प्रजनन स्वास्थ्य में माहवारी संबंधित जानकारियां प्राप्त करेंगे और भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास करेंगे|
हम अपनी भावनाओं को कई तरह से अभिव्यक्त करते हैं उनमें से एक क्रोध भी हैं| हर किसी को कभी न कभी, किसी विशेष परिस्थिति में क्रोध आ सकता है| यह अधिकतर नकारात्मक होता है किन्तु कभी-कभी सकारात्मक भी हो सकता है| यह भावनात्मक प्रतिक्रिया कभी क्षणिक तो कभी लम्बे समय तक चल सकती है| क्रोध का प्रभाव शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है| इससे हमारे संबंधों पर भी बुरा असर होता है| तो हम जानने का प्रयास करेंगे कि क्रोध का सकारात्मक प्रबंधन कैसे करें और आवश्यक परिस्थिति में क्रोध की उचित अभिव्यक्ति कैसे करें?

जीवन में किसी अनचाही बात, घटना, विचार से होने वाली चिंता, घबराहट या डर सेहम कई बार तनाव में आ जाते है| तनाव का हमारे मन, विचार और सोच पर बहुत प्रभाव पड़ता है जिसका असर व्यवहार में भी नज़र आता है| तनाव शब्द से प्रायः नकारात्मक भाव ही प्रतीत होता है किन्तु कई बार इससे सकारात्मक कार्य के लिए उर्जा मिलती है जैसे परीक्षा आने पर आए तनाव से कुछ विद्यार्थियों को डर लगताहै वही कुछ इस तनाव में और अधिक परिश्रम कर अच्छे परिणाम ले आते हैं| तो हम तनाव प्रबंधन के बारे में जानने का प्रयास करेंगे|

हर व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में कई प्रकार की भावनाएं महसूस करता है | भावनाएँ मन में आए विचारों से उत्पन्न होती है | कोई भी भावना सही या गलत नहीं होती है किंतु भावनाएं स्वस्थ और अस्वस्थ हो सकती हैं | जीवन में कभी-कभी उदासी अनुभव करना भी सामान्य बात है | पर यदि यही स्थिति अधिक समय तक बनी रहे और इस कारण दैनिक जीवन की गतिविधियों में व्यवधान पड़ने लगे तो यह अवसाद (डिप्रेशन) हो सकता है | अवसाद विभिन्न भावनात्मक बदलाव और शारीरिक समस्याओं को जन्म देता है। तो हम अवसाद (डिप्रेशन) के कुछ लक्षणों और इसके प्रबंधन के तरीकों को जानने का प्रयास करेंगे | किशोरावस्था में हर नई चीज़ को जानने की जिज्ञासा होती है | इसीलिए किशोर-किशोरियां जोखिम उठाकर कोई भी नई चीजों को आजमाना चाहते हैं, और तो और बड़ों के समझाने के बावजूद भी दोस्तों या अन्यको देखकर या उनके दबाव में आकर इस उम्र में नशा करने लगते हैं| नशा कई प्रकार का होता है एक बार लिया गया नशा, आदत बन सकता है और इस नशे की लत से (शारीरिक और मानसिक विकास) के साथ साथ पारिवारिक और सामाजिक दुष्परिणाम भी होते हैं| तो हम नशे से होने वाले दुष्प्रभाव और नशे के लिए न कहने के तरीकों को जानने का प्रयास करेंगे|

नशीले पदार्थों का सेवन हमारे दैनिक जीवन पर असर डालता है , नशे की लत पड़ने के बहुत से कारण होते हैं , जैसे – मित्रों का दबाव , वातावरण का प्रभाव , संचार माध्यमों का असर और सामाजिक चलन आदि | नशे की लत शारीरिक , मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को बर्बाद कर देती है क्योंकि नशीले पदार्थों के लगातार प्रयोग से शरीर और दिमाग दोनों पर असर पड़ता है | ऐसे व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन के कारण समाज में भी उसकी प्रतिष्ठा धीरे – धीरे कम होने लगती है | नशे की आदत से निकलने के लिएज़रूरी है पक्का इरादा और साथ ही परिवार और विशेषज्ञों की मदद लेना | तो हम नशे की आदत के दुष्प्रभाव और इससे निकलने के तरीकों को जानने का प्रयास करेंगे |

नशीले पदार्थ शुरू में आकर्षित करते हैं , उसके बाद बन जाती है आदत , फिर आती हैं परेशानियाँ | इसके बाद जीवन में रह जाती है समस्याएं , परेशानियाँ ...नशा करने से दमा , कैंसर आदि कई बीमारियाँ हो सकती हैं , साथ ही सामाजिक प्रतिष्ठा खो जाने की संभावना रहती है | नशीली दवाइयों के लिए बने कानून के अनुसार 18 वर्ष से कम उम्र में नशा करना कानूनन अपराध है | नशे से बचाव और लत की आदत से निकलने के लिए जरूरी है – दृढ़ता पूर्वक नहीं कहने का साहस ,  दृढ़ इच्छाशक्ति , परिवार और विशेषज्ञों की मदद | तो हम नशे से होने वाले दुष्प्रभाव और नशे से बचाव और लत की आदत से निकलने के तरीकों को जानने का प्रयास करेंगे |

बाल विवाह एक सामाजिक कुरीति है , सामाजिक मान्यताओं और रूढ़िवादिता के कारण भारत में आज भी बाल विवाह का प्रचलन समाप्त नहीं हुआ है | हालाँकि बाल-विवाह प्रतिषेध अधिनियम , 2006 के अंतर्गत विवाह की न्यूनतम आयु बालिकाओं के लिए 18 वर्ष और बालकों के लिए 21 वर्ष निर्धारित की गई है किन्तु इसे रोकने हेतु कानून के साथ – साथ बालिका शिक्षा , सामाजिक मान्यताओं का सही विश्लेषण , जनजागरूकता और सहायक तंत्र की आवश्यकता है | तो हम बाल विवाह के कारण और इसे रोकने के तरीकों को जानने का प्रयास करेंगे |

बाल विवाह कानूनन अपराध है , फिर भी कम उम्र (लड़की की 18 और लड़के की 21 से कम) में विवाह आज भी प्रचलित हैं | परंपरा और सामाजिक मान्यता के कारण कम आयु में विवाह हो जाते हैं जिसके परिणाम दूरगामी होते हैं | कम उम्र में लड़के – लड़कियों में शारीरिक रूप से परिपक्वता व भावनात्मक और मानसिक स्थिरता नहीं आ पाती और कम उम्र में वह आर्थिक रूप से भी व अन्य प्रकार से दूसरों पर निर्भर रहते हैं | इसीलिए उन्हें शारीरिक ही नहीं अपितु मानसिक , आर्थिक और सामाजिक कई प्रकार के दुष्परिणाम सहने पड़ते हैं | इसी कारण कई बार उनकी शिक्षा भी पूरी नहीं हो पाती जबकि हर बच्चे को उसकी शिक्षा पूरी करने का अधिकार है | तो हम बाल विवाह या कम उम्र में विवाह से होने वाले दुष्प्रभावों को जानने का प्रयास करेंगे |

बाल विवाह के कारण किशोर किशोरियों पर जिम्मेदारियों का बोझ आ जाता है | गर्भधारण से यह जिम्मेदारी और बढ़ जाती है | कम आयु में माता-पिता बनने के दुष्परिणाम महिला , पुरुष के साथ शिशु पर भी पड़ते हैं | किशोरावस्था में बच्चा होने पर उसके कमजोर होने और अन्य परेशानियों की आशंका बढ़ जाती है | जन्म के बाद भी शिशु के बीमार होने की या अन्य संक्रमणों की संभावनाएं अधिक होती हैं | कम उम्र में विवाह और गर्भधारण दोनों के ही गंभीर परिणाम हो सकते हैं | तो हम बाल विवाह के खिलाफ आवाज़ उठाने तथा गर्भधारण से बचाव और बच्चों के बीच अंतर रखने के लिए परिवार नियोजन के साधनों को जानने का प्रयास करेंगे |

किशोर-किशोरियों का सजना - संवारना एवं विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होना एक स्वाभाविक बात है | यह सब किशोरावस्था में होने वाले बदलाव के कारण होता है | इसमें हमारे विचार , भावनाएं और व्यवहार जुड़े होते हैं | इस समय इस प्रकार की भावनाएं आना स्वाभाविक हैं | यौन और यौनिकता हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं | किशोर - किशोरियों की आपस में दोस्ती भी स्वावभाविक है और इस दोस्ती के दायरों को समझने की आवश्यकता भी है | कोई भी कदम उठाने से पूर्व बिना सोचें समझे , अपने मूल्यों के बिना बनाए रिश्ते , बेमानी ही नहीं , कष्टकारी हो सकते हैं | तो हम दोस्ती व इसके दायरों और साथ में यौन और यौनिकता को समझने का प्रयास करेंगे |

हम शरीर की बीमारियों या संक्रमणों की बात करते हैं और शरीर को स्वस्थ रखने के लिए इलाज करवाते हैं. उसी प्रकार प्रजनन अंगों के संक्रमण की बात करना भी जरूरी है , यह भी हमारे ही शरीर का ही हिस्सा हैं | किसी भी रोग का इलाज न करवाना घातक होता है | स्वच्छता की कमी के कारण प्रजनन अंगो में होने वाले संक्रमण प्रजनन तंत्र संक्रमण होते हैं और यौन संचारित संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे को होने वाले यौन सम्बंधित संक्रमण हैं | अन्य बीमारियों की तरह इनका भी उपचार है | यदि किसी को यह संक्रमण हो भी जाते हैं तो शर्म , डर और झिझक के कारण वह किसी से भी बात करने से डरते हैं इसीलिए जरूरी है कि हमें प्रजनन तंत्र संक्रमण और यौन संचारित संक्रमण के बारे में पूरी तथा सही जानकारी हो | तो हम प्रजनन तंत्र संक्रमण के कारण , लक्षण और बचाव को समझने का प्रयास करेंगे |

एचआईवी / एड्स महामारी के रूप में व्याप्त है | यह संक्रमण प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देता है | इससे लड़ने व इसका प्रबंधन करने का एकमात्र साधन एचआईवी / एड्स की सही व विस्तृत जानकारी है | ‘ नाको ' (NACO) राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन के अनुसार भारत विश्व में एचआईवी के संक्रमण में तीसरे स्थान पर है और लगभग 2.39 मिलियन लोग एचआईवी / एड्स से संक्रमित हैं | नाको ( NACO) के आंकड़ों के अनुसार यह संक्रमण 15 से 35 वर्ष की आयु में ज्यादा होता है | किशोरावस्था / युवावस्था में प्रयोगात्मक इच्छाशक्ति , असीमित उत्साह , हार्मोनल परिवर्तन और जागरूकता की कमी आदि के कारण इस आयु वर्ग को एचआईवी होने की संभावना अधिक होती है | तो हम प्रजनन तंत्र संक्रमण के कारण , लक्षण और बचाव को समझने का प्रयास करेंगे |
 
 

 

 

 

 

 

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